Verse of the day
Hear me when I call, O God of my righteousness: thou hast enlarged me when I was in distress; have mercy upon me, and hear my prayer.
Psalm 4:1 in Englishई कुड़ुख़ वेबसाइट नु निमन स्वागत र'ई

यहाँ बिरसा मुंडा की चार प्रसिद्ध तस्वीरें हैं:
पारंपरिक परिधान में उनका चित्र, हाथ में लाठी उठाए हुए – जिसमें वे अपने नेतृत्व और विद्रोह को दर्शाते हैं। उनकी मूर्ति/प्रतिमा – जिसमें उन्हें एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में दिखाया गया है। एक रंगीन चित्र – जो उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को उजागर करता है। एक शास्त्रीय चित्रण – जो उनके चेहरे और आदिवासी पहचान पर केंद्रित है। बिरसा मुंडा के बारे मेंसंक्षिप्त जीवनी:
बिरसा मुंडा (15 नवम्बर 1875 – 9 जून 1900) भारत के एक महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और लोकनायक थे। वे छोटानागपुर क्षेत्र (अब झारखण्ड) के मुंडा जनजाति से थे। उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उलगुलान ("महान कोलाहल") नामक आंदोलन का नेतृत्व किया।
धार्मिक व सांस्कृतिक आंदोलन:
उन्होंने बिरसाइट नामक एक धार्मिक आंदोलन की स्थापना की। इसमें उन्होंने ईसाई मिशनरियों के प्रभाव को अस्वीकार कर आदिवासी रीति-रिवाजों का पुनर्जीवन किया। अपने लोगों के बीच उन्हें “धरती आबा” (पृथ्वी के पिता) के रूप में सम्मान दिया जाता है।
ऐतिहासिक महत्व:
बिरसा के विद्रोह ने आदिवासियों के ज़मीन के अधिकारों की ओर सबका ध्यान खींचा। इसके परिणामस्वरूप अंग्रेज़ सरकार को छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 जैसे संरक्षण कानून बनाने पड़े।
कलात्मक चित्रण:
आज जो चित्र, मूर्तियाँ और पेंटिंग्स उपलब्ध हैं, वे कलाकारों की कल्पना हैं—जो उनके संघर्ष, नेतृत्व और सांस्कृतिक प्रतीक को दर्शाती हैं। कुछ पुराने फ़ोटोग्राफ भी उपलब्ध हैं, लेकिन अधिकांश रूप कलात्मक चित्रों के रूप में ही देखे जाते हैं।
स्मारक व श्रद्धांजलि:
ओडिशा के राउरकेला में बना बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम (जनवरी 2023 में गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा दुनिया का सबसे बड़ा पूरी तरह बैठने योग्य हॉकी स्टेडियम घोषित किया गया)। झारखंड के उलीहातू (उनका जन्मस्थान) में उनकी स्मृति में 150 फीट ऊँची उलगुलान प्रतिमा का निर्माण हो रहा है, जो भारत की सबसे ऊँची प्रतिमाओं में से एक होगी।स्मरण दिवस:
उनकी जयंती (15 नवम्बर) और पुण्यतिथि (9 जून) झारखण्ड ही नहीं बल्कि पूरे भारत में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जाती है। जून 2025 में उनकी 125वीं पुण्यतिथि पर पूरे देश में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए और उन्हें आदिवासी अस्मिता और पुनर्जागरण का प्रतीक माना गया।
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